Monday, February 11, 2008

शेर-ओ-शायरी

जो साज़ से निकली है, वो सदा सबने सुनी है
जो साज़ पे गुजरी है, वो किस दिल को खबर है
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सुना है वो गैर की महफिल में नहीं जायेंगे
कहो तो आज सजा लूँ गरीबखाने को
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ऐ आसमान वाले जमीन पे उतर के देख
होती है क्या जुदाई, तू भी बिछड़ के देख
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जो ख्वाब न टूटते किसीके यहाँ पर तो
कौन खुदा के आगे अपने हाथ फैलाता
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ज्यादा नही है फर्क खुदा और इंसान में
दोनों ने एक दूजे को अपने फायदे के लिए बनाया
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लफ्ज़ मिलते तो दास्ताँ लिख देता
क्या करूं दर्द के लिए अल्फाज़ नही मिलते
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वो भी क्या दिन थे जब संग मुस्कराते थे
अब तो रोने को भी कंधा ढूढ़ते हैं
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कहते थे वो मुझको अपना साया
रौशनी हुयी और हमसे जुदा हो गए
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क्यों जलती रही ऐ शमा तू रात भर
परवाना तो तेरा कब का जल गया
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यूं तो तेरी नज़रों का गुनाह नही पर
अगर में डूब जाऊं इनमे तो खता किसकी .....?
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