Sunday, February 24, 2008

साहिल

राहेगुजर की तकलीफ़ों ने जितना हमें सुकून दिया
उतनी लज्जत मिली न हमको कदम चूमती मंज़िल में
रुख हमने इसलिये सफ़ीने का मौजों के साथ किया
अब पहले सी बात नहीं है, इस दरिया के साहिल में
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