Sunday, February 24, 2008

साहिल

राहेगुजर की तकलीफ़ों ने जितना हमें सुकून दिया
उतनी लज्जत मिली न हमको कदम चूमती मंज़िल में
रुख हमने इसलिये सफ़ीने का मौजों के साथ किया
अब पहले सी बात नहीं है, इस दरिया के साहिल में
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Friday, February 15, 2008

शेर-ओ-शायरी

हमारे दिल में जो धड़कता है सदा
आप अहल-ऐ-जोक की कीमत-ऐ-बस्रतों की नज़र ....
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इस कदर प्यार से ऐ जान-ऐ-जहाँ रखा है
दिल के रुखसार पे इस वक्त तेरी याद ने हाथ
यूं गुमाँ होता है गरचे है अभी सुबह-ऐ-फिराक
ढल गया हिज्र का दिन, आ भी गयी वस्ल की रात
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जिंदगी कुछ भी नही फिर भी जिए जाते हैं
तुझ पे ऐ वक्त हम एहसान किए जाते हैं
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रात भर दीदाये नम्नाक में लहराते रहे
साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
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लिया हर रंज-ओ-गम में आपने नाम-ऐ-खुदा
मेरे गम ख्वार कहते हैं, खुदा क्या है, खुदा क्या है
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वो कौन है जिसने करली इश्क से तौबा
हमे तौ ये गुनाह करने को सारी उम्र कम लगी
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आसान होता वो सफर जिसपे निकला था
काश तुझ संग गुजारी यादों को भूल पाटा
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अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं
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ये एइजाज़ है हुस्न-ऐ-आवारगी का
जहाँ से गुजरे दास्ताँ छोड़ आए
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मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमान छूने में जब नाकाम हो जाए
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हमारी कोशिशों को नाकामी का नाम ना दो यारों
मिले ना मंजिल जब तक हम हारा नही करते
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राज़ की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया
जाने क्यों रुसवाईयों का सिलसिला रहने दिया
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ये वफ़ा की सख्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
ना लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ साथ चल के
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दिल दिया था तौ मुकद्दर भी अता कर देते
वरना तख्लीक से पहले ही फना कर देते
तुमने समझी ही नही इश्क की अजमत वरना
हम तुम्हे एक ही सजदे में खुदा कर देते
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छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आंखों भर आकाश है, बाहों भर संसार
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जीवन के दिन रेन का, कैसे लगे हिसाब
दीमक के घर बैठ के लेखक लिखे किताब
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पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
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वो कहानी जो कभी हमने लिखी थी खून से
ज़र्द-रु पत्तों पे कुछ, ज्यादा उभर कर आ गयी
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मिला बहारों को फरेब तेरी बेरुखी से वरना
ये पेडों से पत्ते झड़ने का मौसम ना था
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Wednesday, February 13, 2008

शेर-ओ-शायरी

एहसास के संग ज़िंदगी से मुलाकात तो कीजिये
अपने हुनर को तराशने वाली कोई बात तो कीजिये
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हर एक ज़ज्बात को दुआ नही मिलती, हर एक आरजू को जुबां नही मिलती
मुस्कान सज़ा रखो तो दुनिया है साथ, क्योंकि, आंसू को तो आंखों में भी पनाह नही मिलती
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वो गर ज़हर देकर मारते तो ज़माने की नज़र में आ जाते
उसने यूं किया की वक्त पर हमें दवा न दी
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दिल के छालों को शायरी कहो तो दर्द नही होता
तकलीफ तो टैब होती है जब लोग वाह वाह करते हैं
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Monday, February 11, 2008

शेर-ओ-शायरी

जो साज़ से निकली है, वो सदा सबने सुनी है
जो साज़ पे गुजरी है, वो किस दिल को खबर है
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सुना है वो गैर की महफिल में नहीं जायेंगे
कहो तो आज सजा लूँ गरीबखाने को
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ऐ आसमान वाले जमीन पे उतर के देख
होती है क्या जुदाई, तू भी बिछड़ के देख
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जो ख्वाब न टूटते किसीके यहाँ पर तो
कौन खुदा के आगे अपने हाथ फैलाता
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ज्यादा नही है फर्क खुदा और इंसान में
दोनों ने एक दूजे को अपने फायदे के लिए बनाया
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लफ्ज़ मिलते तो दास्ताँ लिख देता
क्या करूं दर्द के लिए अल्फाज़ नही मिलते
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वो भी क्या दिन थे जब संग मुस्कराते थे
अब तो रोने को भी कंधा ढूढ़ते हैं
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कहते थे वो मुझको अपना साया
रौशनी हुयी और हमसे जुदा हो गए
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क्यों जलती रही ऐ शमा तू रात भर
परवाना तो तेरा कब का जल गया
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यूं तो तेरी नज़रों का गुनाह नही पर
अगर में डूब जाऊं इनमे तो खता किसकी .....?
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Friday, January 18, 2008

शेर-ओ-शायरी

उस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए ना बने **ग़ालिब
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नाज़ है गुल को नजाकत पे चमन ऐ "जोक"
उसने देखे ही नही नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
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दीदार की तलब और तरीकों से बेखबर
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग
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"उस" से एक बार तो रूठूं में उसी की तरह
और मेरी तरह से "वो" मुझको मनाने आये
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हर लफ्ज़ किताबों मे तेरा अक्स लिए है
एक फूल सा चेहरा मुझे पढ़ने नही देता
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मेरे खुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे
में जिस "मकान" में रहता हूँ उसे "घर" कर दे
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शब-ए-विसाल में रोशन चिराग गुल कर दो
ख़ुशी की बज्म में क्या काम जलने वालों का
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पूछा कुछ इस तरह से उसने मेरा मिजाज़
कहना पडा कि "शुक्र है परवरदिगार का"
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डूबना ही था जो कश्ती का मुकद्दर या रब
आँख के सामने ए काश ना साहिल होता

Thats too much

Our brains are divided into two.
The left side has nothing right in it and the right side has nothing left in it

Monday, January 14, 2008

शेर-ओ-शायरी

मेरे मरने के बाद, मेरे जलने से पहले
ए यारों, मेरा दिल निकाल लेना
कहीं इसमे रहने वाले न जल जाएँ
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हम भी दरिया हैं हमे अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा
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सीरत नहीं है जिसमें वो सूरत फिजूल है
जिस गुल में बू नहीं, वो कागज़ का फूल है
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दोस्तों से इस कदर सदमें उठाए जाने पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
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मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहिए
कि दाना ख़ाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है
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अहले जुबां को है बहुत कोई नहीं अहले दिल
कौन तेरी तरह "हाफीज़" दर्द के गीत गा सके
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लायी हयात आई कज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी से आये ना अपनी खुशी चले
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बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो एक कतरा खून ना निकला
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उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में
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जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ खुदा ना हो
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बंदगी का मेरा अंदाज़ जुदा होता है
मेरा काबा मेरे सज़दों में छुपा होता है
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उम्र तो सारी कटी इश्क-ए-बुताँ में "मोमिन"
आखिरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे
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वो कत्ल भी कर डालें तो चर्चा नहीं होती
हम आह भी भरते तो हो जाते हैं बदनाम
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यह इकामत हमें पैगाम-ए-सफर देती है
ज़िन्दगी मौत के आने की खबर देती है
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मेरे गुनाह ज्यादा है या तेरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब करके मुझे
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उनके देखे से आ जाती है मुह पर रोनक
वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है
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अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो
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Thursday, January 10, 2008

शेर-ओ-शायरी

परिंदों को मिलेगी मंजिल एक दिन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं
वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं
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मुझे मेरे दोस्तों से बचाइए "राही"
दुश्मनों से में खुद निपट लूंगा
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तुम तकल्लुफ़ को भी इख्लास समझते हो "फराज"
दोस्त होता नही हर हाथ मिलाने वाला
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दोस्तों से आज मुलाकात की शाम है
यह सज़ा काट के फिर अपने घर को जाऊँगा
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दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाये
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दिल की हकीकत, अर्श की अजमत, सब कुछ है मालूम हमें
सैर रही है अक्सर अपनी इन पाकीजा मकानों में
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दिल नाउम्मीद तो नही नाकाम ही तो है
लंबी है गम की शाम मगर शाम ही तो है
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उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा ग़ालिब
हम बयाबान में हैं और घर में बहार आयी है
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अपनी गली में मुझको ना कर दफ्न बाद-ए-कत्ल
मेरे पते से खल्क को क्यों तेरा घर मिले -Galib
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मुझे भूलना भी चाहो तो भुला न सकोगे
में पलकों पे ठहर जाऊँगी आंसू की तरह
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Wednesday, January 9, 2008

शेर-ओ-शायरी

चेहरे पे बनावट का गुस्सा, आंखों से छलकता प्यार भी है
इस शोख-ए-अदा को क्या कहिये, इनकार भी है इकरार भी है
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सुनते हैं की मिल जाती है हर चीज़ दुआ से
इक रोज़ तुम्हे माँग के देखेंगे खुदा से
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एक बार जो बिखरी तो बिखर जायेगी
जिन्दगी जुल्फ नहीं जो संवार जायेगी
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देखा जो तीर खाके कमींगाह की तरफ
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी
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तुम दूर खडे देखा ही किये और डूबने वाले डूब गए
साहिल को जो मंजिल समझे वो लज्जत-ए-दरिया क्या जाने
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पत्थर के खुदा वहाँ भी पाए
हम चाँद से आज लौट आये
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सारे मुसाफिरों से ताल्लुक निकल पड़ा
गाड़ी में इक शख्स ने अखबार क्या लिया
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रंज से खूगर हुआ इन्साँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ी इतनी की आसां हो गयी -Ghalib
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कह रहा है मोज-ए-दरिया से समंदर का सुकूँ
जिसमे जितना ज़र्फ़ है वो उतना ही खामोश है -Iqbal
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जिसकी आवाज़ में सलवट हो निगाहों में चुभन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोडा करते -गुलज़ार
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उम्र भर जलाता रहा इस दिल को खामोशी के साथ
और शमा को इक रात की सोज़-ए-दिली पे नाज़ था
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आये हे बैकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब
किस के घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद
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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये
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यही हे जिंदगी कुछ ख़ाक चंद उम्मीदें
इन्ही खिलोनों से तुम भी बहल सको तो चलो
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जिंदगी की बात सुनकर क्या कहें
इक तमन्ना थी जो अब तकाजा बन गयी
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जिंदगी यूं हुयी बसर तनहा
काफिला साथ और सफर तनहा -गुलज़ार
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मैंने ये कब कहा की मेरे हक में हो जवाब
खामोश मगर क्यों हे तू, कोई फैसला तो दे
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कंद-ए-लब का उनके बोसा बे-तकल्लुफ़ ले लिया
गलियाँ खाई बला से, मुह तो मीठा हो गया
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एक हंगामे पे मौकूफ है घर की रोनक
नोहा-ए-गम ही सही, नग्म-ए-शादी ना सही -Galib
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मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
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शेर-ओ-शायरी

रफीकों से रकीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
गुलों से खार बेहतर है, जो दामन थाम लेते हैं
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यह फक्र तो हासिल है, बुरे हैं या भले हैं
दो चार क़दम हम भी, तेरे साथ साथ चले हैं
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कल धूप के मैले से खरीदे थे कुछ खिलोने
एक मोम का पुतला था जो घर तक नही पहुंचा
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जाँ से प्यारे लोगों से भी कुछ कुछ पर्दा लाजमी है
सारी बात बताने वाले, कुछ कुछ पागल होते हैं
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राज-ए-मुहोब्बत कहने वाले लोग तो लाखों मिलते हैं
राज-ए-मुहोब्बत रखने वाला हम सा देखा हो तो कहो
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सूरत दिखा कर मुझे फिर बेताब कर दिया
एक लुत्फ़ आ चला था तेरे इंतज़ार में
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मुझको पाना है तो फिर मुझ में उतर कर देखो
यूँ किनारे से समंदर नहीं देखा जाता
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माना कि आपकी नज़रों में कुछ नहीं है हम
मगर उनसे जाकर पूछिये जिन्हें हासिल नहीं है हम
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जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझे तुम पर
हंस कर कहने लगा कि और आपको आता ही क्या है
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कोई आंखों आंखों से बात कर लेता है
कोई आंखों आंखों में मुलाकात कर लेता है
मुश्किल होता है जवाब देना....
जब कोई खामोश रहकर भी सवाल कर देता है
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इस शहर में अभी तक अजनबी हूँ मैं
सब लोग फरिश्ते हैं, आदमी हूँ मैं
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आंसू निकल पड़े तो मेरी लाज रह गयी
इजहार-ए-गम का वरना सलीका न था मुझे
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जान लेनी ही थी तो कह दिया होता
मुस्कराने की क्या जरूरत थी
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साहिल पे खडे हो तुम्हे क्या गम, चले जाना
मैं डूब रहा हूँ अभी डूबा तो नही हूँ
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Tuesday, January 8, 2008

शेर-ओ-शायरी

दुनिया की महफिलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो -इकबाल
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कता कीजिए न ताल्लुक हमसे
कुछ नहीं तो अदावत ही सही -ग़ालिब
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तकदीर बनाने वाले तूने कमी न की
किसी को क्या मिला, मुकद्दर की बात है
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मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख्वाब की ताबीर बताने वाला
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तेरे आजाद बंदों की, ना यह दुनिया ना वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी, वहाँ जीने की पाबन्दी
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हम तो वो सायिल नहीं, जो दर-बा-दर फिरता रहे
एक ही दर था जहाँ सिर को झुका कर रह गए
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वो तो कुछ हो ही गयी है तुमसे मुहब्बत वरना
हम तो वो खुद सार हैं कि अपनी भी तमन्ना ना करें
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हमको भी हमराह लेते जाईये
एक से अच्छा है दो का काफिला
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यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही
वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए
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सुकून-ए-दिल के वास्ते, वादे तो कीजिए
हम जानते हैं आपसे निभाए ना जायेंगे
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खुशबुओं को फैलने की दरकार बहुत है लेकिन
आसाँ नहीं ये हवाओं से रिश्ता जोड़े बगेर
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हाल-ए-दिल यारों को लिखूं कैसे
हाथ दिल ही से जुदा नहीं होता
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