Friday, February 15, 2008

शेर-ओ-शायरी

हमारे दिल में जो धड़कता है सदा
आप अहल-ऐ-जोक की कीमत-ऐ-बस्रतों की नज़र ....
****
इस कदर प्यार से ऐ जान-ऐ-जहाँ रखा है
दिल के रुखसार पे इस वक्त तेरी याद ने हाथ
यूं गुमाँ होता है गरचे है अभी सुबह-ऐ-फिराक
ढल गया हिज्र का दिन, आ भी गयी वस्ल की रात
****
जिंदगी कुछ भी नही फिर भी जिए जाते हैं
तुझ पे ऐ वक्त हम एहसान किए जाते हैं
****
रात भर दीदाये नम्नाक में लहराते रहे
साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
****
लिया हर रंज-ओ-गम में आपने नाम-ऐ-खुदा
मेरे गम ख्वार कहते हैं, खुदा क्या है, खुदा क्या है
****
वो कौन है जिसने करली इश्क से तौबा
हमे तौ ये गुनाह करने को सारी उम्र कम लगी
****
आसान होता वो सफर जिसपे निकला था
काश तुझ संग गुजारी यादों को भूल पाटा
****
अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं
****
ये एइजाज़ है हुस्न-ऐ-आवारगी का
जहाँ से गुजरे दास्ताँ छोड़ आए
****
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमान छूने में जब नाकाम हो जाए
****
हमारी कोशिशों को नाकामी का नाम ना दो यारों
मिले ना मंजिल जब तक हम हारा नही करते
****
राज़ की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया
जाने क्यों रुसवाईयों का सिलसिला रहने दिया
****
ये वफ़ा की सख्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
ना लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ साथ चल के
****
दिल दिया था तौ मुकद्दर भी अता कर देते
वरना तख्लीक से पहले ही फना कर देते
तुमने समझी ही नही इश्क की अजमत वरना
हम तुम्हे एक ही सजदे में खुदा कर देते
****
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आंखों भर आकाश है, बाहों भर संसार
****
जीवन के दिन रेन का, कैसे लगे हिसाब
दीमक के घर बैठ के लेखक लिखे किताब
****
पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
****
वो कहानी जो कभी हमने लिखी थी खून से
ज़र्द-रु पत्तों पे कुछ, ज्यादा उभर कर आ गयी
****
मिला बहारों को फरेब तेरी बेरुखी से वरना
ये पेडों से पत्ते झड़ने का मौसम ना था
****


2 comments:

आलोक said...

अमिता जी, आज ही यह शेर देखे चिट्ठाजगत पर। मचल गया दिले बेताब।

mehek said...

bahut khub sher hai,bahut badhiya likhti hai aap
http://mehhekk.wordpress.com/