Monday, January 14, 2008

शेर-ओ-शायरी

मेरे मरने के बाद, मेरे जलने से पहले
ए यारों, मेरा दिल निकाल लेना
कहीं इसमे रहने वाले न जल जाएँ
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हम भी दरिया हैं हमे अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा
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सीरत नहीं है जिसमें वो सूरत फिजूल है
जिस गुल में बू नहीं, वो कागज़ का फूल है
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दोस्तों से इस कदर सदमें उठाए जाने पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
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मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहिए
कि दाना ख़ाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है
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अहले जुबां को है बहुत कोई नहीं अहले दिल
कौन तेरी तरह "हाफीज़" दर्द के गीत गा सके
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लायी हयात आई कज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी से आये ना अपनी खुशी चले
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बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो एक कतरा खून ना निकला
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उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में
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जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ खुदा ना हो
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बंदगी का मेरा अंदाज़ जुदा होता है
मेरा काबा मेरे सज़दों में छुपा होता है
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उम्र तो सारी कटी इश्क-ए-बुताँ में "मोमिन"
आखिरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे
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वो कत्ल भी कर डालें तो चर्चा नहीं होती
हम आह भी भरते तो हो जाते हैं बदनाम
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यह इकामत हमें पैगाम-ए-सफर देती है
ज़िन्दगी मौत के आने की खबर देती है
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मेरे गुनाह ज्यादा है या तेरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब करके मुझे
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उनके देखे से आ जाती है मुह पर रोनक
वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है
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अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो
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