Tuesday, January 8, 2008

शेर-ओ-शायरी

दुनिया की महफिलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो -इकबाल
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कता कीजिए न ताल्लुक हमसे
कुछ नहीं तो अदावत ही सही -ग़ालिब
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तकदीर बनाने वाले तूने कमी न की
किसी को क्या मिला, मुकद्दर की बात है
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मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख्वाब की ताबीर बताने वाला
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तेरे आजाद बंदों की, ना यह दुनिया ना वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी, वहाँ जीने की पाबन्दी
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हम तो वो सायिल नहीं, जो दर-बा-दर फिरता रहे
एक ही दर था जहाँ सिर को झुका कर रह गए
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वो तो कुछ हो ही गयी है तुमसे मुहब्बत वरना
हम तो वो खुद सार हैं कि अपनी भी तमन्ना ना करें
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हमको भी हमराह लेते जाईये
एक से अच्छा है दो का काफिला
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यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही
वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए
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सुकून-ए-दिल के वास्ते, वादे तो कीजिए
हम जानते हैं आपसे निभाए ना जायेंगे
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खुशबुओं को फैलने की दरकार बहुत है लेकिन
आसाँ नहीं ये हवाओं से रिश्ता जोड़े बगेर
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हाल-ए-दिल यारों को लिखूं कैसे
हाथ दिल ही से जुदा नहीं होता
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1 comment:

Unknown said...

wah janab kya baat Dil ke sare raaz khol kar rakh diye aapne to.