Wednesday, January 9, 2008

शेर-ओ-शायरी

रफीकों से रकीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
गुलों से खार बेहतर है, जो दामन थाम लेते हैं
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यह फक्र तो हासिल है, बुरे हैं या भले हैं
दो चार क़दम हम भी, तेरे साथ साथ चले हैं
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कल धूप के मैले से खरीदे थे कुछ खिलोने
एक मोम का पुतला था जो घर तक नही पहुंचा
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जाँ से प्यारे लोगों से भी कुछ कुछ पर्दा लाजमी है
सारी बात बताने वाले, कुछ कुछ पागल होते हैं
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राज-ए-मुहोब्बत कहने वाले लोग तो लाखों मिलते हैं
राज-ए-मुहोब्बत रखने वाला हम सा देखा हो तो कहो
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सूरत दिखा कर मुझे फिर बेताब कर दिया
एक लुत्फ़ आ चला था तेरे इंतज़ार में
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मुझको पाना है तो फिर मुझ में उतर कर देखो
यूँ किनारे से समंदर नहीं देखा जाता
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माना कि आपकी नज़रों में कुछ नहीं है हम
मगर उनसे जाकर पूछिये जिन्हें हासिल नहीं है हम
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जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझे तुम पर
हंस कर कहने लगा कि और आपको आता ही क्या है
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कोई आंखों आंखों से बात कर लेता है
कोई आंखों आंखों में मुलाकात कर लेता है
मुश्किल होता है जवाब देना....
जब कोई खामोश रहकर भी सवाल कर देता है
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इस शहर में अभी तक अजनबी हूँ मैं
सब लोग फरिश्ते हैं, आदमी हूँ मैं
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आंसू निकल पड़े तो मेरी लाज रह गयी
इजहार-ए-गम का वरना सलीका न था मुझे
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जान लेनी ही थी तो कह दिया होता
मुस्कराने की क्या जरूरत थी
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साहिल पे खडे हो तुम्हे क्या गम, चले जाना
मैं डूब रहा हूँ अभी डूबा तो नही हूँ
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