Tuesday, April 20, 2010

वह

वह हर गली नुक्कड़ पर तन कर खड़ा था। लोग आते जाते सिर नवाते, चद्दर चढ़ाते उसको। दीमक ने अपना महल बना लिया था, अन्दर ही अन्दर उसके। मैंने जब वरदान माँगा, तो वह ढह गया।

1 comment:

M VERMA said...

क्या बात है
बहुत खूब
ढहन को सलाम