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Lets Crash
Tuesday, April 20, 2010
वह
वह हर गली नुक्कड़ पर तन कर खड़ा था। लोग आते जाते सिर नवाते, चद्दर चढ़ाते उसको। दीमक ने अपना महल बना लिया था, अन्दर ही अन्दर उसके। मैंने जब वरदान माँगा, तो वह ढह गया।
1 comment:
M VERMA
said...
क्या बात है
बहुत खूब
ढहन को सलाम
April 20, 2010 at 6:13 AM
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आप पहलू में गर बैठें तो संभल कर बैठें, दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की |
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ढहन को सलाम
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