Friday, August 21, 2009

सर झुका के

सर उठा के मैंने कितनी ख्वाहिशें की थी

कितने ख्वाब देखे थे, कितनी कोशिशें की थी

जब तू रूबरू आया, नज़रें ना मिला पाया

सर झुका के उस इक पल मैंने क्या नहीं पाया